गंगा में उतराती लाशें इन दिनों चर्चा का विषय हैं। कोरोना काल में इनकी संख्या अचानक क्या बढ़ी, एकाएक बहस का मसला बन गई। दरअसल गंगा किनारे बसे तमाम पूर्वांचल के गांवों में जल प्रवाह के तौर पर अंतिम संस्कार भी एक कुप्रथा का रूप रहा है, जो अबतक कायम है। हालांकि, इन दिनों जो यह संख्या में इजाफा देखा जा रहा है, वह लकड़ियों के बढ़ते दामों और मरने की वालों की संख्या में इजाफे की वजह से है।
बलिया जिले के टुटुवारी गांव के रहने वाले राम मुरारी राय बताते हैं कि जल प्रवाह गंगा किनारे बसे पूर्वांचल के गांवों में अंतिम संस्कार की एक विधि है। तमाम वृद्ध लोग कई बार जल प्रवाह को अंतिम इच्छा बताते हैं तो उनके साथ ऐसा किया जाता है। आर्थिक कारण भी हैं इसके। इसके अलावा सर्प दंश जैसी आकस्मिक मौतों के बाद अंतिम संस्कार जल प्रवाह के तौर पर ही किया जाता रहा है।’
लकड़ियों के दाम बढ़ने से भी लोग कर रहे ऐसा
यह प्रथा अब भी कायम है। हालांकि इस बीच जब गांवों में कोरोना संक्रमण फैल रहा है और लोगों की मौत हो रही है तो इसमें बेतहाशा इजाफा देखने को मिल रहा है। इसके पीछे की बड़ी वजह लोगों की आर्थिक स्थिति और लकड़ियों के बढ़ते दाम हैं। लकड़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं घाटों पर। कई जगहों पर दो गुना से ज्यादा दाम वसूला जा रहा है। इसपर किसी का नियंत्रण भी नहीं है। यही वजह है कि जो लोग अक्षम हैं, वे अंतिम संस्कार के तौर पर लाशों को जल में प्रवाहित कर रहे हैं।
गांवों में जिन लोगों की मौत हो रही है, उनमें कोरोना के लक्षण हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण को पुष्ट करने वाली रिपोर्ट नहीं है। ऐसे में मदद दी नहीं जा सकती। कुछ ऐसे हैं, जिन्होंने जांच तो करवाई और रिपोर्ट आने के पहले ही उनकी मौत हो जा रही है। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए रिपोर्ट तक तो नहीं ही रुका जा सकता है।