श्रीनाथ खंडेलवाल, वाराणसी के एक 80 वर्षीय लेखक, जिन्होंने 400 से अधिक किताबें लिखीं और 16 महापुराणों का अनुवाद किया, समृद्ध पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर थे
80 वर्ष की उम्र तक 400 से अधिक किताबें लिख डाली हैं. उनकी किताबें ऑनलाइन और ऑफलाइन खूब बिकती हैं, लेकिन मौजूदा समय में वह वृद्धाश्रम में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे . ये कहानी है श्रीनाथ खंडेलवाल (SN Khandelwal) की, जो 10वीं फेल होने के बावजूद अपनी लेखन कला से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं. इस उम्र में भी वे नरसिंह पुराण का हिंदी में अनुवाद कर रहे थे उनकी सबसे खास बात यह है कि वह आधुनिक तकनीक से दूर रहकर अपने हाथ से लिखकर अपनी किताबें तैयार करते थे
15 वर्ष की उम्र में अपनी पहली किताब लिखी थी. उन्होंने बताया कि नागर जी के कहने पर उन्होंने यह किताब लिखी, जिसे पढ़कर नागर जी ने उन्हें प्रमाण पत्र दिया. इसके बाद उन्होंने लगातार लेखन किया और अब तक पद्मपुराण, मत्स्यपुराण (2000 पन्नों की), शिवपुराण के 5 खंड और तंत्र पर 300 से अधिक किताबें लिख चुके हैं. इसके अलावा आसमिया और बांग्ला भाषाओं में भी अनुवाद किया था
वृद्धाश्रम में अपनी दिनचर्या के बारे में एक बार उन्होंने बताया कि वह दिन में तीन बार स्नान करते हैं और आश्रम का ही भोजन ग्रहण करते हैं. उन्होंने पद्मश्री सम्मान ठुकरा दिया था, यह कहते हुए कि वह इसके योग्य नहीं हैं. श्रीनाथ खंडेलवाल के मुकाबिक किताबों की बिक्री से जो भी पैसा आता है, उसी से नई किताबें प्रकाशित करवा लेते हैं. आज तक उन्होंने अपनी किसी भी किताब का विमोचन या प्रचार-प्रसार नहीं किया
वृद्धाश्रम के संचालक ने बताया कि जब श्रीनाथ खंडेलवाल वहां आए तो उनकी हालत इतनी खराब थी कि उन्हें उठाकर बिस्तर पर लिटाना पड़ा. परिवार से कोई उनसे मिलने नहीं आता है. उनका बेटा अपनी ससुराल में रहता है और बेटी सुप्रीम कोर्ट में वकील है.वो आश्रम ही अपना परिवार मन्नते थे और वहां रहने वाले लोग क मित्र
श्रीनाथ खंडेलवाल वाराणसी के समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पास लंका इलाके में करोड़ों की संपत्ति है. बावजूद इसके, वह वृद्धाश्रम में रहकर जीवन बिता रहे थे . उनके मुताबिक, उनका अब परिवार से कोई लगाव नहीं है और वे ईश्वर के लिए ही जी रहे हैं. श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्चा संतोष और सृजनशीलता जीवन को अर्थपूर्ण बनाते थे
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मधुसुधन नायर