आयुर्वेद चिकित्सकों / आयुर्वेद छात्रों से अनुरोध है कृपया लेख पूरा अवश्य पढ़ें ।तथा अपने विचार/सुझावों से अवगत अवश्य करवाएं।
हमारा उद्देश्य मात्र आयुर्वेद छात्रों के ज्ञान वर्धन व ऊर्जा का संचार करते हुए आयुर्वेद का प्रचार करना मात्र है।किसी भी औषध का प्रयोग पूर्ण जानकारी होने के बाद स्वविवेक या वरिष्ठ वैद्यों के परामर्श उपरांत ही करें। किसी भी प्रकार की होने वाली हानि हेतुस्कूल या लेखक अध्यापक सदस्य उत्तरदायी नहीं होंगे।
*अर्बुद रोग*
*(आयुर्वेदोक्त विवेचना)*
अर्बुद शब्द की व्युत्पत्ति करें , तो अर्व्व+विच् तस्मै उदेति उद+इण+ड से अर्बुद शब्द बनता है जिसका अर्थ शरीर में हानिकारक, कष्टदायक उत्सेध, मांसकील बनता है।

गात्र प्रदेशे क्वचिदेव दोषा: संमूर्च्छितामांसमभिप्रदूष्य।
वृत्तं स्थिरं मंदरुजं महान्तमनल्पमूलं चिरवृद्याकम्।।
कुर्वन्ति मांसोपचयम तु शोफं तमर्बुदं शास्त्र विदो वदन्ति।।
अर्थात शरीर के किसी एक प्रदेश में दोष मूर्छित होकर मॉस व रक्त को दूषित कर वृत्त, स्थिर, मंदरुजायुक्त, महान मूल वाले उत्सेध को जो चिरकाल में बढकर अपाक जो मांसोच्छय उभार बना देते हैं उसे अर्बुद कहते हैं।


अर्बुद का स्थान महान्त मूल, अनल्पमूल, ओर अगाधमूल बनाने के लिए वहां ही बन सकता है जहां रक्त सरलता से मिल सकता हो, शिरा धमनी का संयोग होता हो ओर रक्त संघात होकर मांसांकुर बनाकर उसके वृत्ताकार महान्त स्वरुप दे सकते हो उसमें पाक ना होता हो ओर होता भी हो तो ईषत् पाक होता हो।

मर्म,कंठ,उदर के महा स्रोतस लसिका ग्रंथि ।



वातार्बुद
पित्तार्बुद
श्लेष्मार्बुद
रक्तार्बुद
मांसार्बुद
मेदोर्बुद

1-सामान्य
2–विशिष्ट


मुष्टिक प्रहारादिभिरर्दितेअंगे मांसं प्रकरोति शोफं।
चोट लगने लगनेसे शरीर के किसी भी स्थान पर होने होने वाले अर्बुद जैसे ओष्ठ नाक कान यकृत, प्लीहा, आंत्र, अन्नप्रणाली, आमाशय, आदि किसी स्थान पर होने वाला ।


प्रदुष्ट मांसस्य नरस्य बाढमेतद्भवेन्मांसपरायणस्य


जिसमें स्राव ना हो
मर्म स्थान में ना हो
स्रोतस में ना हो


(1) एक अर्बुद के अतिरिक्त अन्य
पहले के समीप दूसरा द्विर्बुद
(2)दो अर्बुद एक-साथ या प्रथक पृथक समय में उत्पन्न हो ये असाध्य होते हैं।

जब से प्रकृति में बहुकोशिकीय प्राणी का जन्म हुआ तभी से कैंसर की उत्पत्ति हुई है, इसलिए यह मनुष्य की तरह जानवरों में भी पाया जाता है, कैंसर की उत्पत्ति के लेटिन शब्द cancrum से हुई है जिसका मतलब होता है crab l प्राचीन समय में आचार्य सुश्रुत के द्वारा हजारों वर्ष पूर्व ही केंसर अर्थात अर्बुद के कारण, लक्षण, प्रकार एवं चिकित्सा का वर्णन किया गया है ।आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता चिकित्सा स्थान के 18 वें अध्याय में अर्बुद की चिकित्सा का आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा वर्णन किया है, आचार्य सुश्रुत ने औषधियों के अलावा इसकी शल्य चिकित्सा एवं इसके लिए अग्निकर्म का भी वर्णन किया है आचार्य सुश्रुत अग्निकर्म हेतु धातु की शलाका को तप्त गर्म करके अर्बुद की असामान्य कोशिकाओं को नष्ट करते थे ,क्योंकि अग्नि कर्मों के द्वारा जिन रोगों की चिकित्सा की जाती है वे रोग भविष्य में उत्पन्न नहीं होते हैं ऐसा आचार्यों का कथन है एवं प्रायोगिक रूप से ऐसा देखा गया भी है, सबसे पहले एक ग्रीक सर्जन लियोनिडा ने कैंसर की शल्य चिकित्सा के लिए चाकू का प्रयोग किया था परंतु भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में हजारों वर्ष पूर्व ही इस विधि का वर्णन प्राप्त होता है।
हमारे शरीर में प्रतिदिन सामान्य कोशिकाओं का विभाजन माइटोसिस एक नियमित प्रक्रिया है यह DNA पर आधारित जीन जिनके द्वारा नियंत्रित होती है ,यदि कैंसर के कारण जिन्हें हम कार्सिनोजेनिक कहते हैं उनके द्वारा हमारे शरीर की कोशिकाओं का DNA नष्ट होकर जीन में एक परिवर्तन उत्पन्न कर देते हैं और कोशिकाओं का सामान्य विभाजन अनियंत्रित हो जाता है और कोशिकाएं अनियंत्रित वृद्धि करके एक बड़ा मास बना लेती हैं जिन्हें नियोप्लाज्म अथवा मैलिग्नेंट ट्यूमर अथवा सामान्य भाषा में कैंसर कहते है

अगर किसी मरीज को कैंसर से संबंधित लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, प्रारम्भिक अवस्था में यदि इलाज शुरू हो जाए तो इससे बचा जा सकता है, इसके लिए निम्न जांचे की जाना चाहिए
1-खून की जांच करके रक्त में अनेक प्रकार की कैंसर कोशिकाओं का पता चल जाता है, एक्स-रे ,सीटी स्कैन, एमआरआई द्वारा ट्यूमर का पता लगाया जा सकता है, ट्यूमर का पता लगने पर कैंसर के प्रकार का पता लगाने के लिए उत्तक के कुछ भाग का टुकड़ा लेकर जांच के लिए भेजते हैं इसे बायोप्सी कहते हैं। कैंसर का पूर्ण पता लगने पर कीमोथैरेपी, शल्य चिकित्सा एवं रेडियोथैरेपी द्वारा इसका इलाज किया जाता है ।
किंतु कीमोथेरेपी के दौरान कुछ रोगियों की आंतों में घाव ,भूख नहीं लगना, बाल का उड़ना ,उल्टी जैसा मन होना ,कमजोरी ,कभी कब्ज का होना और कभी दस्त का लगना, नींद नहीं आना ,शरीर में दर्द का बढ़ना, मुंह में घाव होना ,मल मार्ग में घाव होना ,इस प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं इस प्रकार के लक्षणों को दूर करने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों का प्रभाव अत्यंत लाभदायक है ऐसा प्रयोग रूप से एवं प्रत्यक्ष रुप से देखा गया है ।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आमलकी गुडूची का प्रयोग हल्दी का दूध के साथ प्रयोग अत्यंत लाभदायक है। गोमूत्र का प्रयोग कैंसर के लिए रामबाण दवा है। ठंडी चीजों का उपयोग कम से कम करना चाहिए ।अश्वगंधा नींद के आने और मानसिक शक्ति को बढ़ाने हेतु प्रभावी औषधि है ।रसायन के रूप में ब्रह्म रसायन का प्रयोग लाभदायक है ।मुलेठी चूर्ण को मधु के साथ लेने से आंतरिक घाव बभरने में सहायता मिलती है ।अनियंत्रित कोशिका विभाजन को रोकने हेतु प्राणायाम का अच्छा प्रभाव है योग चिकित्सा की सलाह से योग करना लाभदायक है ।मन के जीते जीत है मन के हारे हार अर्थात कैंसर के रोगी को हमेशा उत्साहवर्धक माहौल में रखना चाहिए रोगी हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए। भूख नहीं लगने पर सोंठ, मरिच, पीपल, अजवाइन ,सौंफ का प्रयोग लाभदायक है। शरीर की अग्नि कम होने पर लीवर पर प्रयोग होने वाली दवाओं का प्रयोग यथा रोहितक, फलत्रिकादि क्वाथ। याददाश्त कम होने पर ब्राह्मी ,मण्डूक पर्णी का प्रयोग किया जा सकता है ।कब्ज बने रहने पर अरंड तेल लाभदायक है। उल्टी होने पर मयूरपिच्च भस्म का प्रयोग लाभदायक है ।यदि रोगी के शरीर के बाहरी भाग में घाव हो तो जात्यादि घृत के द्वारा प्रबंधन करना चाहिए ।कैंसर के रोगी की सत्व विजय चिकित्सा आवश्यक है अर्थात कई बार रोगी को ऐसे लोग जो कैंसर को जीत चुके हैं उनके बारे में बताना चाहिए। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन को रोकने में मदद मिलती है, धीरे-धीरे चिकित्सा विज्ञान में प्रगति होने पर कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम में बहुत सहायता मिली है अब कैंसर से मरने वाले रोगियों में लगातार गिरावट आई है, कैंसर में काम आने वाली आयुर्वेदिक औषधियों पर रिसर्च हो चुकी है एवं लगातार हो रही है। वस्तुतः हम प्रतिदिन हमारे जीवन में कैंसर के कारणों का लगातार सेवन कर रहे हैं, जिन से बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है परंतु हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर आने वाली बीमारियों की रोकथाम कर सकते हैं, हमें अपने जीवन में नियमित आहार विहार, सदवृत, दिनचर्या ,रात्रि चर्या, रितु चर्या का पालन ,प्राणायाम, योग, आसन का प्रयोग एवं आयुर्वेदिक संहिता में बताए गए नियमों का पालन करने पर अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता हैl

ये केंसर के फैलाव की अवस्था है। जब उतपत्ति स्थान से कैंसर सेल्स निकल कर शरीर के अन्य भागों को कैंसर से संक्रमित करती हैं और कैंसर के नए नए स्थान बना देती हैं।

OMA शब्द एक sufix है जो ज्यादातर कैंसर के लिए प्रयुक्त होता है
जैसे——-
CARCINOMA या कार्सिनोमा शरीर की विभिन्न कोशिकाओं का कैंसर
SARCOMA या सार्कोमा संयोजी ऊतकों का कैंसर जैसे रक्त कैंसर
LYMPHOMA या लिंफोमा लसिका तंत्र का कैंसर
बाकी का नामकरण जिस अंग में हो उसके अनुसार जैसे ब्रैस्ट कैंसर, रेक्टल, यूटेराइन प्रोस्टेट इत्यादि के कैंसर
अब तक 200 से अधिक प्रकार के कैंसर खोजे जा चुके हैं
चूंकि कोशिका के विभाजन के नियंत्रक तत्व डीएनए का अभाव हो जाता है, उसे वापिस पैदा करना ही चुनौती भरा कार्य है जिसमें अभी कोई सफलता नही मिली।
अभी सिर्फ मैलिग्नेंट कोशिकाओं को ही नष्ट करने में कुछ सफलता मिली है।
इसीलिए मेटास्टेसिस से पहले तक की अवस्था तक ही ट्रीट करना आसान है।
मेटास्टेसिस के बाद उपचार क्रमशः कठिनतर होता जाता है।

In primary stage… We have to increase the Agni
induced dhatwagni damage the uncontrolled growing cell


केंसर में वात ओर कफ , ये दो दोष ही प्रधान कारक है। अर्बुद में संघात होता है जो कफ का कार्य है। और अर्बुद में कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन होता है जो वात का कार्य है। अतः करकटारबुद की चिकित्सा में वात ओर कफ नाशक औषधियों का प्रयोग करना चाहिये।
*अमरसुन्दरी वटी एक आदर्श औषध है*।



A Tumour is a new growth of tissue which which is functionless and often harmful and has a tendency to persist and to increase. it resembles a parasite to its host.

A Tumour or newplasm may be defined as a growth of new cells which proliferate without control and which serve no useful function.

A neoplasm or new growth, loosely called a Tumour is a new formation of tissue which reoroduces with greather or less accurecy the stucture of this tissue from which it arises but it serves no useful purpose in this economy of the body.
इन सभी का सारांश यह है कि
1अर्बुद एक प्रकार की शारीरिक सेलो की नव वृद्धि है।
२-यह शारीरिक अन्य सेलो की तरह कोई कार्य विशेष नहीं करता, वृद्धि मात्र होता है।
३-इसकी वृद्धि निरंतर होती है और इसमें नव सूत्रों के चय की प्रवृत्ति होती है। यह शरीर पर एक परजीवी की तरह जिसके शरीर में होता है उससे अपना पोषण करता है।

नया ग्रोथ या मांस संचय लगभग एक ही बात है।
आधुनिक दृष्टिकोण से भी इसका विभाजन दो प्रकार का होता है।
साधारण अर्बुद
दुष्ट अर्बुद

इसमें कोषाओ की रचना तत्स्थानीय कोषाओ की तरह होती है और यह बढ़कर एक सीमा तक जाकर रुक जाती है।

शल्य क्रिया के बाद भी पुनः प्रसार हो जाता है।
पुनरुत्थान होने पर बडी शिघ्रता से २-३-४गुणा में वृद्धि होती है।

सामान्य अर्बुद समान मांस सूत्र संचय से बनते हैं और दुष्ट अर्बुद जो स्रोतों में होता है अपना अवस्थान अन्यत्र करते हैं इस के लिये सिरा, धमनी, नाडी का संयोग अधिकाधिक होता है तथा इनके विभाजन के लिये रक्त व उसकी संघात क्रिया रक्तार्बुद,मांसार्बुद एवं मेदोर्बुद जैसी होती है।
दोष:प्रदुष्टोरुधिर: सिरास्तु संपीड्य संकोच्य गतस्त्व पाकं।
स्रावावमुन्नंह्यति मांसपिडं मांसांकुरैरावृतमाशचवृद्धिम्।।


(1)Ca 125( Ovarian and endometrial carcinoma)
(2)Ca 19-9 (pancreatic and colorectal carcinoma)
(3)Ca 15-3 ( Breast carcinoma)
(4) Hcg/PSA(prostate cancer,Embryonal chori carcinoma,testicular tumors.
(5) AFP (Hepatocellular and Germ cell carcinoma)
(6)CEA (Colorectal , gastrointestinal,lung,and breast carcinoma)
(7) M-Band(Myeloma)




पहले ल्यूकेमिया अर्थात ब्लड कैंसर के बारे में हम कुछ जान लें इसमें हमारे शरीर की wBC ka बोनमेरो में uncontrolled division hiya hair और विभाजन के बाद जो डब्ल्यूपीसी बनती है वह अन्य ब्लड सेल्स के कार्य में रुकावट डालती है इससे शरीर की Anya कोशिकाओं की संख्या धीरे-धीरे कम होती जाती है यह सामान्यतः जेनेटिक पाया जाता है परंतु स्मोकिंग करने से और कुछ केमिकल का प्रयोग करने से जैसे बेंजीन आदि से होता है इसमें रोगी को बुखार आना झटके लगना रात को बुखार तेज पसीना आना शरीर पर चकत्ते पड़ जाना हिमोग्लोबिन का अत्यंत कम हो जाना शरीर का पीला पड़ जाना कमजोरी हो जाना एवं सबसे बड़ी बात है कि डब्ल्यूबीसी के कम हो जाने से शरीर की इम्युनिटी कम हो जाती है और अनेक बीमारियां हमला कर देते हैं अनेक प्रकार का होता है जैसे लिंफेटिक टिश्यू का इसमें लिंग सेल धीरे-धीरे खत्म हो जाती है अभी अभी हम चिकित्सा की बात करें तो इसमें रोगी को रक्त तो चढ़ाना पड़ता ही है और blood elevator alimment का प्रयोग भी किया जाता है अनियंत्रित विभाजन बात के कारण हो रहा है इसलिए वात नाशक औषधि है अभी दी जा सकती हैं शरीर की उम्र के कम हो जाने की वजह से इसमें इम्युनिटी बढ़ाने वाले रसायन का प्रयोग किया जाना चाहिए

ये रक्त कैंसर की सबसे घातक form है। इसमें रोगी के पास अधिक समय नही होता है। पी आर कुमार मंगलम नामक मंत्री की मृत्यु के बाद ये रोग भारत मे ज्यादा प्रचार में आया।
ज्वर,श्वासकृच्छता, रक्तस्राव, हीमोग्लोबिन का तेजी से गिरना, बदन पर चकत्ते इत्यादि इसके प्रमुख लक्षण हैं।


(आयुर्वेद चिकित्सकों हेतु मार्गदर्शन)
अक्सर देखा है कि कैंसर के पेशेंट आयुर्वेद डॉक्टर के पास आते हैं और पूरा प्रेशर डालते हैं कि आयुर्वेद डॉक्टर यह कह दे कि आपको कोई एलोपैथिक का इलाज कराने की जरूरत नहीं है आयुर्वेद में इसका पूर्ण इलाज हो जाएगा जिम्मेदारी लेता हूं ऐसा कहने पर रोगी और उसके परिवारजन दोनों खुश हो जाते हैं कि डॉक्टर साहब ने गारंटी ले ली है परंतु हमें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेदिक दवाओं से कैंसर पूर्ण तरह ठीक हो जाए ऐसा संभव है
हमें आवश्यकता होने पर रोगी की बायोप्सी , c T , m r i कीमोथैरेपी एवं अन्य कोई भी इलाज जो एलोपैथी में आवश्यक हो उसकी सलाह देना चाहिए और बताना चाहिए कि यह इलाज तो आपको करवाना ही है इसके साथ ही इन इलाज में जो तकलीफ है आएंगी उनसे हम कोशिश करेंगे कि आयुर्वेदिक दवाओं से उनको दूर करें।
मेरा सभी से निवेदन है कि हम सभी प्रकार के कार्सिनोमा को ठीक करने की गारंटी ना लें पूरी रिपोर्ट स्कोर पढ़ें और उन्हें आवश्यक एलोपैथिक लेने की advice दे आयुर्वेदिक दवाएं कैंसर Se होने वाले उपद्रव को रोक सकती हैं रोगी की उम्मीदों को बढ़ा सकती हैं परंतु कैंसर ग्रोथ को नहीं रोक सकती ,मरीज के laabh के लिए हमें उसे जरूर एलोपैथिक ऑंकोलॉजिस्ट से मिलने की सलाह देना चाहिए
आधुनिक समय रिसर्च का समय है हम चाहे कितने भी कैंसर के मरीजों को ठीक कर दे या उनकी तकलीफों को कम कर दे परंतु आयुर्वेद चिकित्सकों की बात कोई सुनने को तैयार नहीं क्योंकि प्रत्येक बड़े मंच पर डाटा चाहिए इसीलिए मैंने एलोपैथिक कैंसर हॉस्पिटल को अपना रास्ता बनाया और सभी स्टैंडर्ड स्केल पर कैंसर के पेशेंट देख रहा हूं प्रोफॉर्मा बनाया है उसको स्टैंडर्ड लेकर कर रहे हैं उसके डेटा बनाने की कोशिश जारी है और आयुर्वेदिक दवाओं के लाभ को आंकड़ों में बताकर हम आयुर्वेदिक दवाओं की सत्यता को सिद्ध करेंगे ताकि वैश्विक स्तर पर जो कार्य कर रहे हैं उसको प्रमाणिकता मिल सके । कैंसर रिसर्च का कार्य बहुत ही कठिन तकलीफ देय होता है।
ध्यान दें कि हम चाहे कितना भी इलाज कर लें कितना भी पैसा कमा लें किंतु medicine को प्रमाणित करने के लिए हमें आधुनिकता की भाषा में बात करना पड़ेगा ।मुझे कैंसर के रोगियों के लिए दी जाने वाली दवाओं का फार्म डायनामिक्स केलकुलेटर एनालिसिस वर्किंग मेथड इफ़ेक्ट ऑन द सिस्टम्स को पढ़ना पड़ता है और मिलने वाले एलोपैथिक चिकित्सकों को बताना पड़ता है हमारी आयुर्वेदिक औषधियां इस तरह कार्य करती हैं
मैं गर्व के साथ आपके बीच में एक बात शेयर करना चाहता हूं कि बड़े-बड़े ऑंकोलॉजिस्ट भी मुझसे आयुर्वेदिक मेडिसिंस के बारे में बात करते हैं। अब हम छुप-छुपकर कैंसर का इलाज नहीं करेंगे खुले मंच पर हम बताएंगे कि हमारी आयुर्वेदिक औषधियां कैसे काम करती हैं और उनको देने में कोई नुकसान नहीं है और हम यह भी बताएंगे कि किमो थेरेपी करवाने के बाद में रोगियों का जीवन अति दुखदाई हो जाता है *कीमोथैरेपी अति आवश्यक है* but with it रक्तवर्धक इम्युनिटी बूस्टर और आयुर्वेदिक रसायन का प्रयोग करने पर रोगी का जीवन अपेक्षाकृत लंबा और सुख में हो जाता है अभी मैंने एक और Cancer सेमिनार में खुले मंच से अपनी बात रखी है और लोगों ने उसे माना है क्योंकि कीमोथैरेपी का हिंदी शब्द रसायन ही है,
हमें व्यवहारिक धरातल पर सोचना जरूरी है। केंसर की टर्मिनल स्टेज मे पेशेंट हमारे पास आता है तब हम भी क्या कर सकते हैं शुरूवात मे आता है तो आगे रोग के बढ़ने पर लोग हमें दोष दें सकते हैं इसलिये हम अपने कदम खींच लेते हैं।