14 सितंबर को पूरा भारत राष्ट्रीय हिंदी दिवस मना रहा है। इसी दिन देश के संविधान ने देवनागरी लिपि यानी हिंदी को तरजीह देते हुए आधिकारिक राजभाषा का दर्जा देकर उसका उत्थान किया। हिंदी को एक सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए यह एक क्रांतिकारी कदम था, फिर भी देश में अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता गया। 15 अगस्त, 1947 के दिन जब देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ, तब इस देश में कई भाषाएं बोलीं जाती थीं। इनमें हिंदी सबसे प्रमुख और ज्यादा बोली जाने वाली भाषा थी।
आज के दौर में विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी एक है और अपनेआप में एक समर्थ भाषा है। इंटरनेट सर्च से लेकर विभिन्न सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर हिंदी का दबदबा बढ़ा है। 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय अपनी मातृभाषा के रूप में हिंदी का उपयोग करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक का उपयोग करते हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमाऊंनी, मगधी और मारवाड़ी भाषाएं शामिल हैं।
हमारी सरकारों ने हिंदी माध्य्म के छात्रों के लिए कभी कोई रोजगार पैदा नही किये । नौकरी के लिए निजी संस्थाओं या उच्च पदों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता है । यदि साक्षात्कार के लिए आया उम्मीदवार अंग्रेजी का इतना अभ्यस्त है कि हिंदी नही बोल पाता तो कम्पनी के लिए सोने पर सुहागा ।
हमारे देश में छात्रों को उच्चस्तर की शिक्षा के लिए सारी अध्ययन सामग्री केवल अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है । हो भी क्यों न जब हिंदी में नौकरी नही तो अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में ही पढ़ाएंगे जहाँ उसका भविष्य सुरक्षित रहे ।
हिंदी उत्थान के नाम पर जनता के टैक्स के पैसों से बड़े बड़े सरकारी आयोजन होते है ,हिंदी प्रसार प्रचार समिति के नाम पर ऊंचे वेतन पर सरकारी लोग नियुक्त है । हिंदी का सबसे ज्यादा नुकसान हम हिंदीभाषियों ने किया । कितनी हीनभावना होती है हमें यह बोलते कि मुझे अंग्रेजी नही आती ।
क्या इसी शर्मिंदगी के साथ हम बोलते है कि मुझे फ्रेंच या जर्मन भाषा नही आती या मैं अवधि नही बोल पाता । असल में अंग्रेजी जो सिर्फ एक भाषा है हम मूर्ख हिंदी भाषियों ने ज्ञान का पर्यायवाची शब्द मान लिया है । कितने फक्र से बोलते है कि मेरे बच्चें को हिंदी गिनती नही आती इस बात पर हम खुद को लानत नही देते । ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेजों की गुलामी शायद हमारे जींस में कही छूट गयी है ।
विचार करने की आवस्यकता है