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आयुर्वेद से :- सांसे तो हम सब लेते है आज जानते है सांसो के बारे में …..

मिनट में 15 बार एक घंटे में श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21600 होती है अब आप जोड़िये आपकी कितनी उम्र है कितनी सांसे आपने ले ली अब तक प्रति सेकंड ये घट रही है

admin by admin
24/09/2021
in feature, नारायणीयम आयुर्वेदिक स्कूल से
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आयुर्वेद से  :- सांसे तो हम सब लेते है आज जानते है सांसो के बारे में …..
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हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर 5 जगह स्थिर हो जाती है। ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।

उक्त सभी को मिलाकर ही चेतना में जागरण आता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती हैं, मन संचालित होता रहता है तथा शरीर का रक्षण व क्षरण होता रहता है। उक्त में से एक भी जगह दिक्कत है तो सभी जगह उससे प्रभावित होती है और इसी से शरीर, मन तथा चेतना भी रोग और शोक से ‍घिर जाते हैं। चरबी-मांस, आंत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायुतंत्र और खून आदि सभी प्राणायाम से शुद्ध और पुष्ट रहते हैं।
(1) व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।
(2) समान : समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

(3) अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।
(4) उदान : उदान का अर्थ ऊपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

(5) प्राण : प्राणवायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक।

उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्बक कहते हैं।

हम सिर्फ इनता ही जानते हैं कि ऑक्सीजन भीतर गई और कार्बन डाई ऑक्सॉइड बाहर निकल आई, लेकिन भीतर वह क्या-क्या सही या गलत करके आ जाती है इसका कम ही ज्ञान हो पाता है। सोचे ऑक्सीजन कितनी शुद्ध थी। शुद्ध थी तो अच्‍छी बात है वह हमारे भीतरी अंगों को भी शुद्ध और पुष्ट करके सारे जहरीले पदार्थ को बाहर निकालने की प्रक्रिया को सही करके आ जाएगी।

प्रत्येक जगह वायु को महसूस करने के लिए कपालभाति और भस्त्रिका का अभ्यास नाड़िशोधन प्राणायाम के अभ्यास के बाद करें। फिर ध्यान में बैठकर मस्तिष्क में वायु की ठंडक को महसूस करें।

यदि हम जोर से श्वास लेते हैं तो तेज प्रवाह से बैक्टीरियां नष्ट होने लगते हैं। कोशिकाओं की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। ‘बोन मेरो’ में नए रक्त का निर्माण होने लगता है। आंतों में जमा मल विसर्जित होने लगता है। मस्तिष्क में जाग्रति लौट आती है जिससे स्मरण शक्ति दुरुस्त हो जाती है।

कपालभाति या भस्त्रिका प्राणायाम तेज हवा के अनेक झोंके जैसा है। बहुत कम लोगों में क्षमता होती है आंधी लाने की। लगातार अभ्यास से ही आंधी का जन्म होता है। 10 मिनट की आंधी आपके शरीर और मन के साथ आपके संपूर्ण जीवन को बदलकर रख देगी। हृदय रोग या फेफड़ों का कोई रोग है तो यह कतई न करें।

(1 )पूरक :अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(2) कुंभक : अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(3) रेचक : अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से सांस लेता और छोड़ता है।

बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाडी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे सांस प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है।

चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। चंद्र नाड़ी से रिणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होता है तो शरीर को उष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है।
प्राय: मनुष्य उतनी गहरी सांस नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी सांस ले और छोड़ सकता है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ी जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगता है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही ‘योग’ कहा जाता है।
प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को एक मिनट में 15 बार सांस लेनी चाहिए। इस तरह एक घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21600 होनी चाहिए।

स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।

जैसे आपके पैदा होने में नौ माह लगते है वैसे ही आप तुरंत नहीं मरते जीवन मरण में वायु का ही अपना योगदान होता है
मनुष्य के मृत्यु के समय सबसे पहले समान वायु निकलती है इसे शरीर से निकलने में 21 से 24 मिनट लगते है इसका काम शरीर का संतुलन तापमान बनाये रखने में होता है तभी तापमान के आभाव में सरीर ऐठने लगता है
48 से 64 मिनट लगता है प्राण वायु को पूर्णतः निकलने में
एव 6 से 12 घंटे लगते है उदान वायु के निकलने में जानते है उदान वायु के निकलने से पहले व्यक्ति को पुनर्जीवित किया जा सकता है पर उदान वायु के निकल जाने के पश्चात फिर सब ख़तम
अपान वायु ८ से १८ घंटे में निकल जाती है अबसे अंत में व्यान वायु निकलती है ११ से १४ दिनों तक यदि शरीर का अंतिम संस्कार न हुवा हो तो इसी लिए समाधी दी जाती है

मधुसूदन नायर
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