क्या भविष्य में बद्रीनाथ जी पहुँचना नामुमकिन हो जायेगा?
जैसा कि किंवदंती है ?
गेटवे ऑफ हिमालय कहा जाने वाला जोशीमठ, बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब/ फूलों की घाटी पहुंचने का अंतिम शहर है। यह शहर ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 7) पर स्थित है। भारत-चीन सीमा पर अग्रिम चौकियों की वजह से भी यह शहर सामरिक महत्व रखता है
जोशीमठ शहर में 1970 के दशक से हल्का भू-धसांव हुआ। 1976 में मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में ये बताया कि जोशीमठ धीरे-धीरे भूगर्भ में समा रहा है। फरवरी 2021 में धौलीगंगा में आई बाढ़ के कारण अलकनन्दा के तट के कटाव के उपरान्त से इस समस्या ने गम्भीर स्वरूप ले लिया है। तब से सैकड़ों मकान दरक चुके हैं, अब तो धरती फाड़कर जगह-जगह से पानी भी निकलने लगा है, कुछ भवन जमीन में ऐसे समा चुके हैं जैसे पहले कभी थे ही नहीं। फिलहाल यहाँ होटल में यात्रियों के रुकने पर रोक लगा दी है, एशिया का सबसे लंबा औली रोपवे बंद कर दिया गया है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार पूरा शहर ग्लेशियर के मलवे पर बसा हुआ होने की वजह से अति भूस्खलन के लिये अतिसंवेदनशील है। जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे सुरंग से निकाली जा रही एनटीपीसी की निर्माणाधीन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना समस्या को बढ़ा रही है। हेलंग विष्णुप्रयाग बाईपास की खुदाई एक अन्य बड़ी समस्या है। पर्यटकों का दबाव, अनियोजित विकास (5 से 7 मंजिला तक होटल बने हैं) और ड्रेनेज सिस्टम न होने की वजह से भी ये समस्या विकराल हो गयी है।
राज्य में भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (IIT),रूड़की, केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI), रूड़की, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग, देहरादून, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (IIRS), देहरादून तथा वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, देहरादून के होने के बाद भी यदि कोई घटना होती है तो पता नहीं किसकी जिम्मेदारी होगी।
जोशीमठ, उत्तराखंड