चारधाम सड़क परियोजना के निर्माण में उत्तराखंड से बाहर की कंपनियों को ठेके दिए गए।
स्थानीय ठेकेदारों ने पेटी कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया।
इसी तरह रेलवे में भी बाहरी ठेकेदार काम कर रहे हैं। बड़े प्रोजेक्ट में बाहर के ठेकेदारों को काम मिल रहा है। आउटसोर्सिंग एजेंसियां भी बाहर से यहां आकर काम कर रही हैं। मूल उत्तराखंडी की हर जगह उपेक्षा हो रही है।
यह बात कुछ हद तक सही भी है कि उत्तराखंड में कोई बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी नहीं है। इसलिए अधिकतर बाहर की कंपनियां यहां बड़े प्रोजेक्ट पर काम रही है। लेकिन इन प्रोजेक्टों में टेक्निकल और नॉन टेक्निकल स्टॉफ के रूप में मूल उत्तराखंडी को वरीयता दी जानी चाहिए थी। हम इस मांग को लंबे समय से उठा रहे हैं कि किसी भी बड़े प्रोजेक्ट में उत्तराखंड के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाय। अभी सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत रोजगार ही स्थानीय लोगों को दिया जा रहा है।
जबकि उत्तराखंडी इंजीनियर हैं। आईटीआई प्रशिक्षित युवा हैं। चालक-परिचालक हैं। सिक्योरिटी गार्ड के लिए कई युवा हैं। अब अधिकतर कार्य विभागों में कंप्यूटर से हो रहे हैं। ऐसे कई युवा हैं, जो हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। यानी टेक्निकल और नॉन टेक्निकल फील्ड में युवाओं की भरमार है। इसके बावजूद अधिकतर बाहर के लोगों को ही इस फील्ड में नौकरी दी जा रही है और यहां के युवाओं को धक्के मारकर गेट से बाहर किया जा रहा है।
रेलवे का निर्माण हो या एनएच का निर्माण कार्य, स्थानीय युवाओं की उपेक्षा ही हुई है। आज भी मैं कई युवाओं को देखता हूँ, जो इन कंपनियों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें गेट से अंदर घुसने तक नहीं दिया जाता। धक्के मारकर बाहर निकाला जाता है। स्थानीय युवाओं के रोज़गार की बात करने वाला कोई नहीं है।
मोहित ढिमरी के फेसबुक वाल से